सरकार ने संसद में किया स्वीकार, विमानों के डेटा से हुई छेड़छाड़, देश के बड़े एयरपोर्ट्स पर GPS स्पूफिंग का प्रयास

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Posted On:Tuesday, December 2, 2025

नई दिल्ली: संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान, भारत सरकार ने एक बड़ा साइबर सुरक्षा जोखिम स्वीकार किया है। सरकार ने पुष्टि की है कि देश के कई प्रमुख हवाई अड्डों पर GPS स्पूफिंग (नकली सिग्नल) और GNSS (ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम) इंटरफेरेंस की गंभीर घटनाएं दर्ज की गई हैं। नागरिक उड्डयन मंत्री राम मोहन नायडू ने संसद को बताया कि इन घटनाओं ने विमानों के संचालन और उनकी सटीक स्थिति (लोकेशन) का पता लगाने वाले सैटेलाइट-आधारित नेविगेशन सिस्टम को बाधित किया है।

मंत्री ने बताया कि दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद, अमृतसर और बेंगलुरु सहित कई शहरों के महत्वपूर्ण हवाई अड्डों से इस तरह की स्पूफिंग की रिपोर्ट मिली हैं। यह खुलासा विमानन सुरक्षा (Aviation Safety) के संदर्भ में चिंताएं बढ़ाता है, क्योंकि आधुनिक विमानों का संचालन और नियंत्रण मुख्य रूप से सैटेलाइट नेविगेशन पर निर्भर करता है।

DGCA के निर्देश के बाद सामने आए मामले

नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) ने नवंबर 2023 में एक महत्वपूर्ण निर्देश जारी किया था। इस निर्देश में सभी एयरलाइंस और हवाई अड्डा संचालकों (एयरपोर्ट ऑपरेटर्स) को GPS स्पूफिंग या GNSS इंटरफेरेंस के किसी भी मामले की अनिवार्य और तत्काल रिपोर्टिंग के लिए कहा गया था। इस निर्देश के लागू होने के बाद ही देश भर से इस तरह के व्यवधानों (disturbances) की लगातार रिपोर्ट सामने आने लगीं।

सरकार ने शीतकालीन सत्र में विमानों के डेटा से छेड़छाड़ की बात की पुष्टि करते हुए बताया कि जब भी सैटेलाइट-आधारित नेविगेशन सिस्टम बाधित होता है, तो मानक प्रक्रिया के तहत विमानों को संचालित करने के लिए जमीन पर मौजूद पारंपरिक नेविगेशन सिस्टम का उपयोग किया जाता है। इसका मतलब है कि सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए वैकल्पिक और बैकअप प्रणालियाँ मौजूद हैं, लेकिन सैटेलाइट सिस्टम का बाधित होना एक गंभीर सुरक्षा चुनौती है।

क्या है GPS स्पूफिंग?

GPS स्पूफिंग एक प्रकार का उन्नत साइबर अटैक है। इसमें हमलावर विमानों को गुमराह करने के उद्देश्य से नकली सैटेलाइट सिग्नल भेजते हैं। इन नकली सिग्नलों की वजह से विमानों में मौजूद GPS-आधारित डिवाइस भ्रमित हो जाते हैं और वे पायलटों को गलत लोकेशन, गति या अन्य डेटा दिखाने लगते हैं। GNSS इंटरफेरेंस, जिसे जैमिंग भी कहा जाता है, में शक्तिशाली रेडियो फ्रीक्वेंसी सिग्नल का उपयोग करके वास्तविक सैटेलाइट सिग्नल को अवरुद्ध (ब्लॉक) कर दिया जाता है, जिससे विमान का रिसीवर काम करना बंद कर देता है। दोनों ही तकनीकें विमानन सुरक्षा के लिए बड़े खतरे पैदा करती हैं।

सरकार ने दिया सुरक्षा का आश्वासन

नागरिक उड्डयन मंत्री राम मोहन नायडू ने संसद को आश्वस्त किया कि सरकार इस गंभीर मामले से निपटने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रही है। उन्होंने कहा कि सभी प्रमुख हवाई अड्डों को ऐसे मामलों की नियमित रूप से रिपोर्टिंग करने के लिए कहा गया है, ताकि किसी भी समस्या का पता समय रहते लगाया जा सके और उससे निपटा जा सके।

केंद्र सरकार ने स्वीकार किया कि विमानों के डेटा के साथ छेड़छाड़ एक गंभीर मामला है, जिसे देखते हुए निगरानी और तकनीकी जांच को और भी मजबूत किया गया है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि देश का हवाई क्षेत्र इन बढ़ते साइबर खतरों से सुरक्षित रहे।

यह घटनाक्रम दिखाता है कि जैसे-जैसे देश का विमानन क्षेत्र सैटेलाइट-आधारित नेविगेशन पर अधिक निर्भर होता जा रहा है, वैसे-वैसे उसे साइबर सुरक्षा और सिग्नल इंटरफेरेंस जैसी जटिल चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। सरकार का यह कदम इस बात का संकेत है कि वह विमानन सुरक्षा के इस डिजिटल आयाम को अत्यंत गंभीरता से ले रही है।


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