बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के नामांकन में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने अपने परिवार की पारंपरिक सीट राघोपुर से नामांकन दाखिल कर दिया है। इसके साथ ही, इस सीट पर सियासी सरगर्मी तेज़ हो गई है, क्योंकि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में सीट बंटवारे के तहत यह सीट भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के खाते में गई है। ऐसे में, राघोपुर में मुख्य मुकाबला राजद और भाजपा के बीच ही माना जा रहा है।
बीजेपी ने तेजस्वी यादव के सामने एक ऐसा उम्मीदवार उतारा है, जिसका इतिहास लालू परिवार को एक बार मात देने का रहा है। बीजेपी ने राघोपुर से सतीश कुमार यादव को अपना प्रत्याशी बनाया है। सतीश कुमार यादव ने 2010 के विधानसभा चुनाव में जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के टिकट पर तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी को लगभग 13 हजार वोटों के अंतर से शिकस्त दी थी, जिसके बाद यह सीट चर्चा में आ गई थी।
लालू परिवार का पारंपरिक गढ़
वैशाली जिले की राघोपुर सीट लालू यादव परिवार का पारंपरिक गढ़ रही है। 1995 से अब तक (1998 और 2010 को छोड़कर) इस सीट पर लगभग लालू परिवार का कब्जा रहा है। लालू प्रसाद यादव ने 1995 में पहली बार जनता दल के टिकट पर यहां से विधानसभा में प्रवेश किया था। इसके बाद, 2000 में वे फिर से चुनाव जीते। उनकी पत्नी राबड़ी देवी ने 2005 में दो बार हुए विधानसभा चुनावों में इस सीट से जीत दर्ज की थी।
2010 में जदयू के टिकट पर सतीश कुमार यादव की जीत ने इस किले में सेंध लगाई थी। हालांकि, 2015 और 2020 के चुनावों में तेजस्वी यादव ने इस सीट से जीत हासिल कर परिवार की विरासत को कायम रखा। 2015 में राजद और जदयू के साथ आने के बाद सतीश कुमार यादव ने भाजपा का दामन थाम लिया था, और 2020 में भी उन्होंने भाजपा के टिकट पर तेजस्वी को कड़ी टक्कर दी थी, लेकिन उन्हें लगभग 38,000 वोटों से हार का सामना करना पड़ा था।
बदले हुए समीकरण में कांटे की टक्कर
तेजस्वी यादव का लगातार तीसरी बार राघोपुर से नामांकन दाखिल करना न सिर्फ उनकी इस सीट के प्रति प्रतिबद्धता दर्शाता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि वह इसे राजद के लिए प्रतिष्ठा की सीट मानते हैं। उनके नामांकन के दौरान राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी की उपस्थिति ने कार्यकर्ताओं में उत्साह भर दिया।
हालांकि, इस बार एनडीए के एकजुट होकर चुनाव मैदान में उतरने से राघोपुर की लड़ाई तेजस्वी यादव के लिए आसान नहीं रहने वाली है। बीजेपी ने सतीश कुमार यादव को उतारकर एक बार फिर उस पुराने इतिहास को दोहराने की कोशिश की है, जब उन्होंने राबड़ी देवी को हराया था। राघोपुर की चुनावी जंग अब केवल एक विधायक चुनने तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि यह लालू परिवार के वर्चस्व और बीजेपी की सेंधमारी की कोशिशों के बीच एक प्रतीकात्मक संघर्ष बन गई है। यह देखना दिलचस्प होगा कि सतीश कुमार यादव क्या इस बार बदले हुए सियासी समीकरण में 'लालटेन' की रोशनी को मद्धम कर पाते हैं, या तेजस्वी यादव एक बार फिर परिवार के इस अभेद्य किले को बचाए रखने में कामयाब होते हैं।