असम के करबी आंगलोंग जिले में अंधविश्वास ने एक बार फिर इंसानियत को शर्मसार कर दिया है। जादू-टोना करने के शक में गांव वालों ने एक दंपती की बेरहमी से हत्या कर दी। पहले उन्हें तेज धार वाले हथियारों से हमला कर गंभीर रूप से घायल किया गया और फिर उनके ही घर में आग लगा दी गई। इस दिल दहला देने वाली घटना में दोनों पति-पत्नी की जलकर मौत हो गई। यह घटना मंगलवार रात की बताई जा रही है और इलाके में दहशत का माहौल है। मृतकों की पहचान गार्दी बिरोवा और उनकी पत्नी मीरा बिरोवा (33 वर्ष) के रूप में हुई है। यह घटना करबी आंगलोंग जिले के होवराघाट क्षेत्र के बेलोगुरी मुंडा गांव में हुई। ग्रामीणों का आरोप था कि यह दंपती जादू-टोना कर आसपास के लोगों को नुकसान पहुंचा रहा था। इसी अंधविश्वास के चलते भीड़ ने कानून को अपने हाथ में ले लिया और निर्दोष दंपती को मौत के घाट उतार दिया।
घर में घुसकर किया हमला, फिर लगा दी आग
पुलिस के अनुसार, हमलावरों ने पहले दंपती के घर में जबरन घुसकर उन पर तेज धार वाले हथियारों से हमला किया। गंभीर रूप से घायल होने के बाद दोनों घर के अंदर ही फंसे रह गए। इसके बाद हमलावरों ने घर में आग लगा दी। आग इतनी तेज थी कि दोनों पति-पत्नी बाहर निकलने का मौका भी नहीं पा सके और जिंदा जल गए। जब तक आसपास के लोग कुछ समझ पाते, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
घटना की सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची और जांच शुरू की। पुलिस ने मौके से सबूत जुटाए और गांव के लोगों से पूछताछ की। इस मामले में पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस का कहना है कि मामले की गहन जांच की जा रही है और आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
अंधविश्वास की गिरफ्त में इलाका
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि करबी आंगलोंग का यह इलाका लंबे समय से अंधविश्वास की चपेट में है। यहां लोग अफवाहों और बिना किसी प्रमाण के बातों पर आसानी से विश्वास कर लेते हैं। बीमारी, मौत या किसी भी तरह की परेशानी को लोग जादू-टोने से जोड़ देते हैं, जिसके चलते निर्दोष लोग हिंसा का शिकार बन जाते हैं। अधिकारी ने कहा कि ऐसे मामलों में जल्दबाजी और भीड़ की मानसिकता कितनी खतरनाक साबित हो सकती है, यह घटना उसका ताजा उदाहरण है।
अंधविश्वास के खिलाफ कानून, फिर भी नहीं थमी घटनाएं
असम सरकार ने इस गंभीर समस्या को देखते हुए वर्ष 2015 में असम विच हंटिंग (प्रोहिबिशन, प्रिवेंशन एंड प्रोटेक्शन) एक्ट लागू किया था। यह कानून काफी सख्त है। इसके तहत किसी व्यक्ति को डायन बताकर प्रताड़ित करना, सामाजिक बहिष्कार करना या हत्या करना गंभीर अपराध है। ऐसे मामलों में कड़ी सजा और भारी जुर्माने का प्रावधान है। यह अपराध गैर-जमानती और संज्ञेय है, यानी पुलिस बिना वारंट के भी आरोपियों को गिरफ्तार कर सकती है।
इस कानून का मुख्य उद्देश्य अंधविश्वास को खत्म करना, समाज में जागरूकता फैलाना और निर्दोष लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। बावजूद इसके, जमीनी स्तर पर अंधविश्वास की जड़ें अभी भी मजबूत बनी हुई हैं।
पिछले दस सालों में सौ से ज्यादा मौतें
चिंताजनक बात यह है कि कानून होने के बावजूद असम में डायन शिकार की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। आंकड़ों के मुताबिक, पिछले दस वर्षों में ऐसे मामलों में 100 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। इनमें ज्यादातर पीड़ित गरीब, आदिवासी और कम पढ़े-लिखे समुदायों से होते हैं। इन इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और शिक्षा का अभाव लोगों को अंधविश्वास की ओर धकेल देता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि सिर्फ कानून बनाना ही काफी नहीं है। जब तक गांव-गांव में जागरूकता अभियान नहीं चलाए जाएंगे, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूत नहीं किया जाएगा, तब तक ऐसी घटनाओं पर पूरी तरह रोक लगाना मुश्किल है।
इंसानियत पर सवाल
करबी आंगलोंग की यह घटना एक बार फिर समाज के सामने बड़ा सवाल खड़ा करती है। अंधविश्वास के नाम पर निर्दोष लोगों की हत्या न सिर्फ कानून का उल्लंघन है, बल्कि मानवता पर भी गहरा धब्बा है। जरूरत है कि समाज मिलकर ऐसे अंधविश्वास के खिलाफ खड़ा हो और किसी भी अफवाह पर आंख मूंदकर भरोसा करने के बजाय सच और विज्ञान को अपनाए। तभी ऐसी दर्दनाक घटनाओं पर लगाम लगाई जा सकती है।